बिल्लेसुर बकरिहा–(भाग 48)

बिल्लेसुर ने समझाया, "अम्मा, रोओ नहीं। भाभी बड़े मज़े में हैं। मन्नी भय्या उनकी बड़ी सेवा करते हैं। 


मैं जहाँ गया था, मन्नी वहाँ से दूर हैं। हाल मिलते थे।

 लोग कहते थे अच्छी नौकरी लग गई है। 

उनका सारा मन भाभी पर लगा है। 

अब भाभी उतनी ही बड़ी नहीं हैं।

 लोग कहते थे, बिल्लेसुर अब दो-तीन साल में तुम्हारे भतीजा होगा।

"राम करे, सुख से रहें। हमको तो धोखा दे गये बच्चे! हमारे और कौन था? जिस तरह दिन कटते हैं, हमारी आत्मा जानती है।" 

कहकर मन्नी की सास ने अघाकर साँस छोड़ी।

बिल्लेसुर ने कहा, "जैसे मन्नी, वैसे मैं। तुम यहाँ रहो। खाने की यहाँ कोई तकलीफ़ नहीं। 

मुझे भी बनी बनाई दो रोटियाँ मिल जायँगी।"

मन्नी की सास बहुत प्रसन्न हुईं। कहा, "बच्चा, फूलो-फलो, तुम्हारा तो आसरा ही है। 

अब के आई है तो कुछ दिन रहकर जाऊँगी। तुम्हारा काम-काज यहाँ का देख लूँ। 

ब्याह एक लगा है, हो गया तो उसे तुम्हारी गृहस्थी समझा दूँ।"

"इससे अच्छी बात और क्या होगी?" बिल्लेसुर पौरूष में जगकर बोले।

मन्नी की सास ने कहा, "बच्चा, अब तक नहीं कहा था, सोचा था, जब काम से छुट्टी पा जाओगे, तब कहूँगी।

 ब्याह एक ठीक है। लड़की तुम्हारे लायक, सयानी है। 

लेकिन हमारी बिटिया की तरह गोरी नहीं। 

भलेमानस है। घर का कामकाज सँभाल लेगी। बताओ, राज़ी हो?"

बिल्लेसुर भक्तिभाव से बोले, "आप जानें। आप राज़ी हैं तो मैं भी हूँ।"

मन्नी की सास प्रसन्न हुईं, कहा, "ठीक है। कर लो। 

उसको भी तुम्हारे साथ तकलीफ़ न होगी। थोड़ी-सी मदद उसकी माँ की तुम्हें करती रहनी पड़ेगी। 

ब्याह से पहले, बहुत नहीं, तीस रुपये दे दो ! ग़रीब है, कर्जदार है। फिर कुछ-कुछ देते रहना।

 उसके भी और कोई नहीं। मैं लड़की को तुम्हारे यहाँ ले आऊँगी। यहीं विवाह कर लो। 

बरात उसके यहाँ ले जाओगे तो कुल ख़र्चा देना पड़ेगा, इसमें ज़्यादा ख़र्चा बैठेगा। 

घर में अपने चार नातेदार बुलाकर ब्याह कर लोगे, भले भले पार लग जाओगे।"

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